चंद्रबदनी ! श्री यंत्र को कपड़े से ढकने की परंपरा...

सिद्ध पीठ माँ चंद्र बदनी मंदिर
हरीश थपलियाल। जगत गुरु शंकराचार्य ने टिहरी जिले में सिद्ध पीठ माँ चंद्र बदनी मंदिर  स्थापित किया था जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।। मंदिर के  पुजारी भूपति प्रसाद भट्ट ने कहा कि इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं हैं बल्कि यहां एक श्री यंत्र स्थापित हैं। सूरज ढलने के बाद जब पुजारी इस श्री यंत्र को कपड़े से ढकते हैं तो अपनी आंखें झुका कर ही ढकते हैं क्योंकि इस यंत्र की तेज रौशनी आंखों को खराब कर सकती हैं। यह दिव्य मंदिर हिंडोलाखाल विकास खंड नामक स्थान पर स्थित चित्रकूट पर्वत पर हैं। इस मंदिर के साथ देवी सती की पौराणिक कथा जुड़ी हैं। जिसके मुताबिक जब देवी सती के पिता राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से आहत हुई माता सत्ती ने यज्ञ अग्नि में कूद कर अपने देह त्याग दी थी।
जिसके बाद भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वहां जाकर दक्ष का सिर काट दिया तथा माता सती की लाश को लेकर जंगलों में घूमने लगे। भगवान विष्णु ने इस स्थिति को भांप कर  न चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए बल्कि वह टुकड़े जिस जिस स्थान पर गिरे वहां शक्ति पीठ बन गया। चित्रकूट पर्वत पर देवी सती का बदन गिरा था इसलिए इसको चंद्रबदनी सिद्धपीठ कहा जाता हैं।
यहां खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से भरपूर हैं यह स्थान -इस मंदिर के आसपास का सारा क्षेत्र प्राकृतिक नजारों से भरपूर हैं। इस स्थान की यात्रा करने वाले लोग इसे कभी भूल नहीं पाते हैं।  श्रद्धालु ऋषिकेश से देवप्रयाग होकर आसानी से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं। घने जंगलों तथा ऊंची पहाड़ियों से गुजरते रास्ते तीर्थ यात्री का मन मोह लेते हैं। इस मंदिर के पास ही यात्रियों के विश्राम की भी व्यवस्था हैं। नवरात्रों के दिनों में इस शक्तिपीठ पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।

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