राम के अग्निबाण से, रावण हुआ धराशाही!बोले रावण "बस अलविदा हे रघुवर, अब तो मैं जा रहा हूं"
वाचस्पति रयाल/नरेंद्रनगर।
श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में यहां पालिका के रामलीला मैदान में चल रही प्रभु राम की 68 वें लीला के मंचन की दशम् रात्रि को राम-रावण युद्ध ने लीला देखने भारी तादाद में आए दर्शकों में कौतूहल पैदा कर दिया। दर्शकों के उत्साह और कौतूहल का खास कारण यह था कि 68 वर्षों से चल रही रामलीला में पहली बार 35 फुट ऊंचा रावण का पुतला बनाने के लिए मेरठ से कारीगर बुलाये गये थे, इस भारी-भरकम रावण के पुतले को जलते देखने के लिए शहर सहित आसपास के गांव से यहां पांडाल में भारी भीड़ जमा हो गई थी।
लक्ष्मण द्वारा मेघनाथ का वध करने के बाद प्रभु श्रीराम द्वारा रावण के बलशाली भाई कुंभकरण का वध देख बौखलाए अभिमानी रावण स्वयं श्रीराम से युद्ध करने रणभूमि में जा पहुंचा। श्री राम और रावण में भयंकर युद्ध होते देख देवताओं की मंडली के माथे पर भी चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं। प्रभु श्री राम युद्ध में रावण का शीश काट डालते हैं तो दूसरा शीश उत्पन्न हो जाता है यह देख रावण के भाई विभीषण श्री राम के निकट जा पहुंचते हैं और बताते हैं कि ब्रह्मा जी के वरदान से दशानन की नाभि में अमृत है जिसके कारण एक सिर कटने पर दूसरा उत्पन्न हो रहा है। अतः नाभि का अमृत अग्निबाण से ही सूख जाएगा।
इसके बाद प्रभु श्री राम एक साथ 31 बाण छोड़ते हैं जिसमें एक दशानन की नाभि में लगा और शेष बाणों से उसके दसों शीश और बीसों भुजाएं कटती ही अभिमानी रावण ,क्षत-विक्षत विराट शैल शिखर की तरह जमीन पर धराशाही होते ही प्रभु राम के चरणों में कह उठता है।
"बस अलविदा हे रघुवर,
अब तो मैं जा रहा हूं"
प्रभु राम भ्राता लक्ष्मण को ज्ञानी रावण के पांव की तरफ जाकर शिक्षा प्राप्त करने को कहते हैं। इसके बाद भगवान राम ने विभीषण का राजतिलक कर उन्हें लंका का राजा बनाया वनवास की अवधि पूर्ण होते ही प्रभु राम ,लक्ष्मण व माता सीता सहित अयोध्या की ओर रुख करते हैं। क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने रात्रि भर लीला का आनंद लिया इस मौके पर उन्होंने कहा कि रावण का वध अधर्म पर धर्म की विजय का संदेश देता है। इसलिए तमाम योनियों में सर्वोत्कृष्ट मानव को सत्कर्म पर चलकर अपना जीवन सार्थक बनाने में प्रेरणा प्रद उदाहरण पेश करने चाहिए।
इस मौके पर पालिका अध्यक्ष राजेंद्र विक्रम सिंह पंवार, डॉक्टर संजय महर, पूर्व पालिका अध्यक्ष श्रीमती दुर्गा राणा, सुरेंद्र थपलियाल आदि गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। मंच साज-सज्जा से लेकर लीला के कलाकारों में निर्देशक रमेश असवाल व दिनेश कर्णवाल,उद्घोषक पूर्व प्रधानाचार्य ऋतुराज सिंह नेगी व महेश गुसाईं,पात्र सज्जाकार प्रकाश ड्यूंडी, मनोज गंगोटी, हारमोनियम पर राकेश बहुगुणा ,तबला पर जय सिंह के अलावा कलाकारों में द्वारिका प्रसाद जोशी, धूम सिंह नेगी, शैलेंद्र नौटियाल, पवन कुमार ड्यूंडी, हिमांशु जोशी,अभिनव पुंडीर, आकाश नेगी, गौरव रावत, हिमांशु रयाल,हितेश आदि प्रमुख थे।