SPECIAL: उत्तरकाशी में 1978 से लेकर अब तक इतनी बार प्राकृतिक आपदाओं ने तोड़ी कमर...

उत्तरकाशी में 1978 से लेकर अब तक इतनी बार प्राकृतिक आपदाओं ने तोड़ी कमर...
उत्तरकाशी दैवीय आपदाः
हरीश थपलियाल।
उत्तरकाशी आपदाओं का गढ़ बन रहा है। वर्ष 1978 की बाढ़,1991में आया भूकंप, 2012 की अस्सी गंगा में आई बाढ़ हो या फिर 2013 की प्राकृतिक आपदा हो, प्रकृति के इस कहर ने उत्तरकाशी के लोगों को झकझोर कर रख दिया। मगर आठ साल बाद फिर काल बन कर आई प्रकृति ने मोरी के सनेल,किराणु, टिकोची, आदि गांव के ग्रामीणों की कमर तोड़ दी। जिसमें दर्जनों लोग काल के गाल में समा गए। अभी भी बुद्धिजीवी जनप्रतिनिधियों, विद्धवान अधिवक्तागण, पत्रकारों, समाज सेवी जनों को गहनता से सार्वजनिक चिंता करनी होगी।। उत्तरकाशी के रवाईं घाटी निवासी इंजीनियर सीएल भारती ने संवेदना व्यक्त करते हुए कहा का कि जब लोगों से संपर्क किया तो उनकी बातों पर बहुत सहजता से भरोसा हो रहा था, सब कुछ सामने था, लोगों के चेहरे पर दुःख, कुछ खो देने का एहसास और सूनापन था।


ऐसा लग रहा था मानो जैसे उनके हाथों में बिछुड़ गए अपनों की तस्वीरें हों। जिनका अभी तक कोई पता नहीं है। जिनसे उनके परिवार के लोगों का संपर्क नहीं हो पा रहा है कि वे कहां खो गए होंगे ?
उत्तरकाशी में बादल फटने (क्लाउड ब‌र्स्ट) के बाद बाढ़ और भूस्खलन से हुई तबाही से हम सभी उदास हैं और साथ ही भौचक्के भी हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है? इस जिज्ञासा को दूर करने के लिए इस बार आओ जानें बादल फटने के कारण और किस्म-किस्म के बादलों के बारे में.. दोस्तो आपको ध्यान होगा केदारनाथ इलाके में जब पूरे वेग से सैलाब आया, उस वक्त हर कोई बेखबर था इस अनहोनी से..। हां, यह अनहोनी ही तो थी, जो बहाकर ले गई न जाने कितनी जिंदगियां..। सूनी कर गई न जाने कितनी मांओं की गोद.. छीन कर ले गई पिता का प्यार और भाई-बहन का साथ..।


तुम्हें पता ही है कि इस सैलाब के आने का एक जिम्मेदार बादल फटना भी है। यही हाल उत्तरकाशी के मोरी क्षेत्र मे हुआ जहां बादल फटने से बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है और मोलटी, किराणु, स्नेल गांव के लोग बादल फटने की तबाही से बुरी तरह प्रभावित हो गए।
क्या है बादल फटना-
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बादल फटना या क्लाउड ब‌र्स्ट बारिश होने का एक्सट्रीम फॉर्म है। इसे मेघविस्फोट या मूसलाधार वर्षा भी कहते हैं। मौसम विज्ञान के अनुसार, जब बादल बड़ी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं। पानी इतनी तेज रफ्तार से गिरता है कि एक सीमित जगह पर कई लाख लीटर पानी एक साथ जमीन पर गिर पड़ता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। तुमने गंगा-अवतरण की पौराणिक कथा पढ़ी ही होगी, जिसमें गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगीरथ ने भगवान शिव का सहारा लिया था, जिन्होंने अपनी एक लट के सहारे गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। सोचो, यदि गंगा एक साथ पृथ्वी पर बह जातीं, तो कितनी तबाही मच जाती। इसी तरह बादल फटने पर भी बादलों का पूरा पानी एक साथ पृथ्वी पर गिर पड़ता है। बादल फटने के कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है। यह तो तुम जानते ही हो कि जब नॉर्मल बारिश होती है तो धीरे-धीरे धरती उसे सोखती जाती है। लेकिन क्लाउड ब‌र्स्ट में पानी इतनी ज्यादा मात्रा में गिर पड़ता है कि वह गिरते ही तेजी से निचले इलाकों की ओर बहने लगता है। जब उसे जगह नहीं मिलती तो वहां बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। एक तो पानी का वेग बहुत तेज होता है, दूसरे इतने ही वेग से कभी-कभी ओले भी गिरने लगते हैं। पानी के भारी फोर्स के कारण रास्ते में आने वाली चीजें ध्वस्त होती चली जाती हैं। यह हम केदारनाथ आपदा के दौरान देख चुके है।  जब मजबूत मकान भी ताश के पत्तों की तरह पानी में समाते चले गए।


दोस्तों क्लाउड ब‌र्स्ट को और बारीकी से जानने के लिए तुम्हें यह भी जानना होगा कि बादल कितनी तरह के होते हैं। बादलों की आकृति और उनकी पृथ्वी से ऊंचाई के आधार पर इन्हें कई वगरें में बांटा गया है। पहले वर्ग में आते हैं, लो क्लाउड्स, यानी ये पृथ्वी से ज्यादा नजदीक होते हैं। इनकी ऊंचाई लगभग ढाई किलोमीटर तक होती है। इनमें एक जैसे दिखने वाले भूरे रंग के बादल, कपास के ढेर जैसे कपासी (क्यूमुलस), गरजने वाले काले रंग के रुई जैसे (क्यूमलोनिंबस), भूरे-काले रंग के वर्षा वाले स्ट्रेट बादल (निम्बोस्ट्राटस) और भूरे-सफेद रंग के स्ट्रेट-कपास जैसे (स्ट्रेटोक्यूमुलस) बादल आते हैं। बादलों में दूसरा वर्ग है मध्य ऊंचाई वाले बादलों का। इनकी ऊंचाई ढाई से साढे़ चार किलोमीटर तक होती है। इस वर्ग में दो तरह के बादल हैं आल्टोस्ट्राटस और आल्टोक्युमुलस। तीसरा वर्ग है उच्च मेघों का। इनकी ऊंचाई साढ़े चार किलोमीटर से ज्यादा रहती है। इस वर्ग में सफेद रंग के छोटे-छोटे साइरस बादल, लहरदार साइरोक्युमुलस और पारदर्शक रेशेयुक्त साइरोस्ट्राटस बादल आते हैं।


इन तमाम बादलों में कुछ हमारे लिए फायदेमंद हैं, तो कुछ डिजास्टर बनकर आते हैं। बादल फटने की घटना के लिए क्युमुलोनिंबस बादल जिम्मेदार हैं। इन बादलों को गौर से देखो तो ये बड़े खूबसूरत लगते हैं। ऐसा लगता है, जैसे आकाश में कोई बहुत बड़ा गोभी का फूल तैर रहा हो। इनकी लंबाई 14 किलोमीटर तक होती है। आखिर इतने सुंदर बादल तबाही क्यों ले आते हैं। दरअसल, जब क्युमुलोनिंबस बादलों में एकाएक नमी पहुंचनी बंद हो जाती है या कोई हवा का झोका उनमें प्रवेश कर जाता है, तो ये सफेद बादल गहरे काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं और तेज गरज के साथ पूरी शक्ति के साथ बरस पड़ते हैं। क्युमुलोनिंबस बादलों के बरसने की रफ्तार इतनी तेज होती है कि मानो आसमान से पूरी नदी उतर आई हो।

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