देखें विडियो: एकमात्र ऐसा स्कूल जहाॅं पाठ्यक्रम विषय के रूप में पढ़ाई जाती है गढ़वाली ! यूपी, बिहार के बच्चे सिख रहे गढ़वाली, लोकभाषा के लिए है आशा की किरण..!

एकमात्र ऐसा स्कूल जहाॅं पाठ्यक्रम विषय के रूप में पढ़ाई जाती है गढ़वाली ! यूपी, बिहार के बच्चे सिख रहे गढ़वाली, लोकभाषा के लिए है आशा की किरण..! 

राजेश नेगी / पहाड़ीखबरनामा। 
आधुनिकता और पश्चिमी प्रभाव के इस दौर में देवभूमि उत्तराखण्ड़ की लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भले ही विलुप्ती की कगार पर हैं, लेकिन ऋषिकेश के एक छोटे से स्कूल से प्रदेश की लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी के उत्थान के लिए एक आशा की किरण निकलती जरूर दिख रही है। 
उत्तराखण्ड़ की लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी  विलुप्ती की कगार पर हैं क्योकि हमारे पूर्वजों द्वारा हमें विरासत में दी गयी लोकभाषा की ये अनमोल धरोहर हम नई पीढ़ी तक नही पहुचा पा रहे है, या फिर आधुनिकता और अंग्रेजी भाषा के प्रभाव में पहुचाना ही नही चाह रहे है, ऐसे में लोकभाषाओं के संरक्षण के लिए प्रदेश में सरकार और संस्थाओं द्वारा कागजों पर भले ही सरकारी स्तर पर सैकड़ो प्रयास समय-समय पर होते आ रहे हों लेकिन लोकभाषाओं के संरक्षण के तमाम दावे उन कागजों में ही दम तोड़ देते है, लेकिन तीर्थनगरी ऋषिकेश के उड़ान स्कूल में उत्तराखण्ड़ की लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी  के लिए एक आशा की किरण जरूर नजर आ रही है, इससे पहले आपको कुछ इस बारे में कुछ बताऐं पहले आप ऋषिकेश के उड़ान स्कूल की ये विडियो खबर देखिए- 
देखिए विडियो खबर- यहाॅ पढ़ाई जाती है गढ़वाली भाषा
तीर्थनगरी ऋषिकेश के मायाकुण्ड़ में स्थित उड़ान स्कूल प्रदेश का पहला ऐसा स्कूल है जहाॅ बच्चों को उत्तराखण्ड़ की लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी  एक विषय को तौर पर पढ़ाई जाती हैं, और इसके साथ ही प्रार्थना और वन्दना भी लोकभाषा में की की जाती है, उड़ान स्कूल ने बच्चों को लोकभाषाऐं सिखाने के लिए बकायदा स्पेशल लोकभाषाओं के वर्णमाला कलेण्डर व आखर ज्ञान किताब तक का विमोचन कर अपने विघालय के सलेबस में सम्मलित करवाया, उडान स्कूल में लोकभाषा सिखने वाले इन बच्चों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि लोकभाषा सिखने वाले ये बच्चे देश के विभिन्न प्रान्तों से हैं, और उड़ान स्कूल में इन बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है, विद्यालय प्रबन्धन की राज्य सरकार से मांग है कि लोकभाषाओं को बचाने के लिए सरकार को सभी सरकारी व प्राईवेट विघालयों में लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी  को अनिवार्य विषय के तौर पर बढाया जाना चाहिए, साथ ही प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में भी लोकभाषा से जुड़े सवाल सम्मलित किए जाने चाहिए। 

लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग वर्षो से उठती आयी है, लेकिन आज तक सरकार की लोकभाषाओं के प्रति बेरूखी ही है कि आज तक प्रदेश की लोकभाषाऐं गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी  को लिपिबद्ध तक नही किया गया, लेकिन इन बच्चों को देख आशा है कि हमारे हुकुमरान लोकभाषाओं को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठानें के बारे में जरूर सोचेगे। 

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