आप पत्रकार हैं या नेता हैं या ठेकेदार! सोशल मीडिया में अब उठ रहे सवाल!

आप पत्रकार हैं या नेता हैं या ठेकेदार! सोशल मीडिया में अब उठ रहे सवाल! 
हरीश थपलियाल 
पत्रकारिता लोकतन्त्र का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण स्तम्ब होने के साथ ही पत्रकार समाज का दर्पण भी माना जाता रहा है, जिसको लोकतन्त्र का पहरी भी कहा जाता है, लेकिन पत्रकारिता में कुछ लोगों के कारनामों के कारण गाहे बाहे पत्रकारों को लेकर सवाल भी उठ जाते हैं, जिससे पहरी के रूप में पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों को भी शर्मिदा होना पड़ता है। 


ऐसे ही कुछ सवाल आजकल सोशल मीडिया में तैर रहे हैं, सोशल मीडिया आम लोगों के लिए एक ऐसा मंच बनकर उभरा है जहा खुलकर आम लोगों अपनी आवाज को बुलंद कर पाते हैं और पत्रकारिता की आड़ में कुछ लोगों के चल रहे धंधों पर भी अपनी राय रख देते हैं, सोशल मीडिया में आजकल एक सवाल तैर रहे है कि कई पत्रकार पत्रकारिता की आड़ में नेतागिरी से लेकर ठेकेदारी तक कर रहे हैं, वैसे तो हर व्यक्ति की स्वतंत्रा है कि वो क्या व्यवसाय के रूप में करे व क्या समाजसेवा के रूप में, बावजूद इसके कि उनकी मूल पहचान पत्रकारिता पर इसका कोई असर न पड़े, लेकिन स्वभावित है कि असर पड़ना तय है।


वैसे उन लोगों की भी कमी नही जिन्होने नेता बनने की ठानी तो पत्रकारिता को बाय-बाय कह दिया, और एक नया सन्देश भी समाज में दिया कि दोनों का मिलन नही हो सकता, सत्ता और पत्रकारिता एक साथ नही चल सकती। ऐसे लोंगों की समाज में इज्जत और बढ़ जाती है लेकिन कुछ लोग पत्रकारिता का लाभ लेते हुए सत्ता का सुख भी भोगना चाहते हैं, और सत्ता को अपने पत्रकारिता से मनमाफिक तोड़ने व मोड़ने के जुगाड़ में लगे रहते हैं, ऐसे में खुद उनको भी कई अवसरों पर पता नही लगता कि वो पत्रकार है या नेता! और साथ में ठेकेदारी भी करनी है। ऐसे में पत्रकारिता को लेकर सभी पत्रकार कटघरे में खड़े हो जाते है।


पत्रकारिता की मूल भावना को बचाने और लोगों के विश्वास को दोबारा पैदा करने के लिए पत्रकारिता से जुड़े लोगों को आत्मचिन्तन की जरूरत है, क्योकि पत्रकारिता और सत्ता दो अलग अलग धड़े हैं दोनों का मिलन जनता के हित में कभी नही हो सकता, और क्योंकि पत्रकारिता को सत्ता की आवाज किसी भी काल खण्ड में नही माना गया है, हमेशा से ही पत्रकारिता जनता की ही आवाज रही है। 


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