तो क्या मौसम विभाग की डिक्शनरी में बादल फटने जैसी कोई चीज नही होती! जानिए पूरा सच..
महेश पंवार / देहरादून।
मानसून शुरू होते ही पहाड़ों में बादल फटने की घटनाऐं एक के बाद एक सामने आती हैं, ऐसे में आम लोग ही नही बल्कि प्रशासन भी असंमजस्य की स्थिति में रहता है कि किसे मात्र अतिवृष्टि कहा जाए और किसे बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट! लेकिन आप इस बात पर हैरान हो सकते हैं कि मौसम विभाग की डिक्शनरी में बादल फटने जैसी कोई चीज नही होती है, जी हाॅ बिल्कुल मौसम विभाग की डिक्शनरी में बादल फटने या क्लाउड बर्स्ट जैसी कोई चीज होती ही नहीं है, मौसम विभाग की भाषा में इसे अतिवृष्टि ही कहा जाता है। पहाड़ों में जब भी कहीं अतिवृष्टि से नुकसान होता है तो ऐसे में अक्सर इसे बादल फटने की संज्ञा दी जाती है हालांकि मौसम विभाग इनकी पुष्टि करने से इनकार कर देता है।
जानिए क्या होता है बादल फटना यानी क्लाउड बर्स्ट
बादल फटना जिसे अंग्रेजी में क्लाउड बर्स्ट कहते हैं, एक छोटे से दायरे में काफी बड़ी मात्रा में अचानक बारिश होना होता है। ऐसा तब होता है जब वातावरण में दबाव बेहद कम हो जाता है। आमतौर पर बादल अचानक एक दूसरे से या फिर किसी पहाड़ी से टकराते हैं, तब अचानक भारी मात्रा में पानी बरसता है। यह प्रक्रिया ज्यादा ऊंचाई पर नहीं होती। इसमें 100 मिलीमीटर प्रति घंटा या उससे भी तेज रफ्तार से बारिश होती है, जिससे बाढ़ जैसा मंजर दिखने लगता है। भारी नमी से लदी हवा अपने रास्ते में जब पहाड़ियों से टकराती है तो बादल फटने की घटना होती है। हिमालय क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहां ऐसी घटनाएं ज्यादा देखने को मिलती हैं।
बादल फटने के दौरान आमतौर पर गरज और बिजली चमकने के साथ तेज आंधी के साथ भारी बारिश होती है। एक साथ भारी मात्रा में पानी गिरने से धरती उसे सोख नहीं पाती और बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है और चारों तरफ तबाही मच जाती है। बीच में यदि हवा बंद हो जाए तो बारिश का समूचा पानी एक छोटे इलाके में एकाएक जमा होकर फैलने लगता है। पहाड़ों पर बादल फटने की अधिकतर आपदाएं पहाड़ी क्षेत्रों में ही होती हैं। जैसे की हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर आदि। 02 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश चंद मिनटों में ही हो जाती है बादल फटने पर। जिस कारण से भारी तबाही मचती है। 2500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर बादल फटने की घटना आमतौर पर होती है।
