कभी खेत खलियानों में रेडियो थी जिंदगी।।।



हरीश थपलियाल। 

आज के दौर में तमाम नये-नये माध्यमों के बावजूद रेडियो की दीवानगी आज भी बरकार है, वजह है कि यह हर वक्त आपके साथ रह सकता है,आज भी जो लोग बदलते माध्यमों से वाकिफ नहीं हैं, कम पढ़े-लिखे हैं उनके लिए रेडिया सूचना और मनोरंजन के लिहाज से वरदान बना हुआ है,एक और वजह कि यह अन्य माध्यमों से तेज भी है, दुर्गम क्षेत्रों में भी इसकी फ्रिक्वेंसी आसानी से पहुंच जाती है।। पिछले 10 से 15 साल को छोड़ दें तो भारत के ज्यादातर लोगों के बीच टेलीविज़न से पहले महज रेडियो ने अपनी उपस्थिति बनाये रखी थी और लोगों का साथी बना।  
रेडियो खेत-खलिहानों में किसानों, मज़दूरों की ज़िंदगी का हिस्सा बना।आज फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे तमाम एप की दुनिया में भी रेडियो से रिश्ता पहले जैसा बरकरार है। निजी चैनलों के ज़रिए रेडियो ने खुद अपना तेवर, कलेवर बदल लिया है। पिछले 10 सालों को याद किया जाय तो गांव घरों में  रेडियो के गुनगुने गीतों से दिन की शुरुआत होती थी, ओर शाम ढलते ही विविध भारती के गीत ग्रामीणों तक पँहुचते। जो महज आज सिर्फ याद बन कर रह गई है।। 

खबर पर प्रतिक्रिया दें 👇