भूले नही भूलती 16 जून 2013 में केदारनाथ की वो काली रात! सुनिए जलप्रलय 6वीं बरसी पर एक प्रत्यक्षदशी की मन की बात!

भूले नही भूलती 16 जून 2013 में केदारनाथ की वो काली रात

भूले नही भूलती 16 जून 2013 में केदारनाथ की वो काली रात, जलप्रलय 6वीं बरसी पर एक प्रत्यक्षदशी की मन की बात!

अरुण प्रकाश बाजपेई (एडवोकेट)  केदारनाथ तीर्थ पुरोहित 
रूद्रप्रयाग। रूह कांप जाती है जब 16 17 जून 2013 की केदारनाथ आपदा की याद आती है मैं 15 जून 2013 को सुबह 6 बजे जब गुप्तकाशी से केदारनाथ के लिए चला था मन में बहुत उत्साह था लेकिन 15 तारीख की शाम होते-होते जब बारिश ने अपना रूद्र रूप जारी रखा तो भैरवनाथ की पहाड़ियों की तरफ हल्के हल्के पहाड़ दरकने लगे ये केदारनाथ त्रासदी का प्रकृति द्वारा दिया गया पहला संकेत था।
इससे हमें आभास होने लगा कि कुछ तो होने वाला है, अचानक शाम को आरती के समय मैं मंदिर के अंदर गया, बाबा परिक्रमा करने के बाद भी मुझे मेरी अंतरात्मा ने एक कंपकपाहट सी हुई पहली बार केदारनाथ मंदिर में जाने पर जो अनुभूति होती थी वह अनुभूति आज गायब है। जैसे तैसे 16 तारीख का दिन भी बारिश लगातार होने के कारण मैं घर के अंदर ही रहा, जैसे ही शाम को 8 बजकर 45 मिनट पर मंदाकिनी नदी ने अपना रास्ता बदला तो उस रास्ते से आदि गुरु शंकराचार्य समाधि स्थल, भारत सेवा आश्रम तथा चांद कॉटेज के साथ साथ बिरला धर्मशाला आपदा के बहाव में बह चुका था।
अधिकांश लोग अपने घरों से बाहर निकले और उस रात को जब हम अपनों की तलाश करने लगे तो पता चला लगभग डेट से 200 लोग काल की ग्रास में समा चुके हैं, जैसे तैसे 16 जून की रात बीतने पर जब 17 की सुबह उस मंजर से नुकसान का आंकलन करने के लिए लिए हम लोग बाहर निकले तो 6ः55 तक रोज की तरह टेलिफोनिक वार्ता करने के मंदिर के पीछे पहुचे तो वहाॅ मोबाइल का टावर जमीदोज हो चुका था, आपदा का भयंकर मंजर सिर्फ 2 मिनट में तहस-नहस करके शांत हो गया था और आज तक वह तस्वीर जब भी आंखों के सामने आती है तो तो मन विचलित हो जाता है, हम जब 16 और 17 जून को दिन रात काटने के बाद अट्ठारह की सुबह जब हम मंदिर के आंगन में एकत्रित हुए तब तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था आज कौन जिन्दा है ओर कौन हम से बिछड़ गए लेकिन धीरे धीरे तस्वीरें साफ होती गई और हमने हजारों तीर्थयात्रीयों के साथ ही अपने 3 गांव के 54 लोगों को आपदा में खो दिया था।
 लेकिन अट्ठारह की सुबह जब हेलीकॉप्टर गरुड़ चट्टी के ऊपर जमीन में बैठने की कोशिश करते हुए रेस्क्यू करना चाह रहा था तो उसे हमने उसे एक समतल मैदान में उतराया और धीरे-धीरे रेस्क्यू प्रारंभ हुआ, चैथे सेटल में मैं जब गुप्तकाशी आया तो वहां पर देखा सभी लोग अपनों की तलाश में सभी हेलीकॉप्टरों के आगे पीछे घूम रहे थे लेकिन निराश मन से मैं उन लोगों का सामना नहीं कर पाया, जिनके परिजनों को मौत की जानकारी मुझे हो गई थी, मैं जैसे तैसे करके घर लौटा सोचा धीरे धीरे सबको पता चल जाएगा लेकिन 26 जून तक लगभग सभी आपदा में बचे हुए लोग अपने घर 2013 तत्कालीन सरकार ने आधिकारिक रूप से रेस्क्यू करना शुरू किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
17 जून 2013 को 6ः55 पर आपदा आते ही समय मैंने तत्कालीन डीएम महोदय के एक सहायक को उनके सरकारी नंबर टेलीफोन कर 16 जून की रात को हुई आपदा से भारी त्रासदी के बारे में बता दिया था और थाना रुद्रप्रयाग में भी फोन करके व कायदा मैसेज नॉट करवाया था लेकिन यह प्रशासन की लापरवाही कहें या कुछ और आज तक मेरी समझ में नहीं आया धीरे-धीरे केदारनाथ पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास की बात होने लगी लेकिन आज भी आपदा के वह खंडहर भवन इस बात की गवाही देते हैं केदारनाथ पुरी में 6 साल बीत जाने के बाद भी अभी आपदा के निशान बाकी हैं, आशा करूंगा की इस पोस्ट को यदि कोई जिम्मेदार व्यक्ति समय देकर पड़ेंगे आपदा के निशानों को मिटाने में अभी भी काफी तेजी की आवश्यकता महसूस होती है आपदा प्रभावितों को दरकिनार किए जाने की तथाकथित कुछ लोगों द्वारा विचार होना आवश्यक है। 

खबर पर प्रतिक्रिया दें 👇