रामरतन पंवार/जखोली।
अविभाजित उत्तरप्रदेश के समय में जखोली विकासखण्ड़ के चिरबटिया में 1992 राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान तो खोल दिया गया लेकिन न उत्तर प्रदेश के जमाने न उत्तराखण्ड़ बन जाने के बाद इस राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान की किसी ने सुध ली, आलम यह है कि 1992 से अब तक ये राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान किराये के भवन में चल रहा है, आज दो जिलों की सीमाओं में बने इस राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान में दो-दो जिलों टिहरी और रूद्रप्रयाग के बच्चे बढ़ते हैं लेकिन इस संस्थान की सुध लेने वाला कोई नही!
अविभाजित उत्तरप्रदेश के समय में जखोली विकासखण्ड़ के चिरबटिया में 1992 राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान तो खोल दिया गया लेकिन न उत्तर प्रदेश के जमाने न उत्तराखण्ड़ बन जाने के बाद इस राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान की किसी ने सुध ली, आलम यह है कि 1992 से अब तक ये राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान किराये के भवन में चल रहा है, आज दो जिलों की सीमाओं में बने इस राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान में दो-दो जिलों टिहरी और रूद्रप्रयाग के बच्चे बढ़ते हैं लेकिन इस संस्थान की सुध लेने वाला कोई नही!
बीते 27 सालों से राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान चिरबटिया के लिए दो-दो जिलों के लोग भवन बनने के इन्तजार में हैं लेकिन अब तक निराशा ही हाथ लगी है, लोग इन्तजार कर रहे हैं कि आखिर कब सरकार द्वारा चिरबटिया मे आई टी आई का भवन बने बड़ी बात ये भी है कि 28 सालो से राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान जिस किराये के भवन मे चल रहा है वो जर्जर है कभी भी किसी बड़े हादसे का अदेशा हमेशा बना रहता है, इसमें प्रशिक्षण ले रहे छात्रों का ध्यान पढ़ाई पर कम अपनी सुरक्षा पर ज्यादा रहता है।
शूरूआती दौर मे इस औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान मे विभिन्न ट्रेडो मे लगभग 50 से ऊपर छात्र छात्राएँ प्रशिक्षण प्राप्त करते थे, लेकिन धीरे धीरे अव्यवस्थाओ के चलते इस प्रशिक्षण संस्थान से कई छात्र अन्यत्र कालेजो मे चले गये, बर्तमान समय मे इस संस्थान मे मात्र 14 बच्चे ही प्रशिक्षण ले रहे, आज चिरबटिया मे जो ये संस्थान जिवित है वह चिरबटिया मे तैनात प्रधानाचार्य की मेहनत की बदोलत जिन्दा है, ये संस्थान केवल दो लोगों के सहारे चल रहा है, यही नही वर्षो से लिपिक का भी पद रिक्त चल रहा जिसकी भी जिम्मेदारी प्रभारी प्रधानाचार्य की ही है, जनता का कहना है कि सरकार दुर्गम क्षेत्रो मे खोले गये व्यवसायिक शिक्षण संस्थानो को धीरे बंद करने पर तुली है, आज प्रदेश सरकार पर्वतीय क्षेत्र यानी दुर्गम क्षेत्रो मे स्थित शिक्षण संस्थान को अन्यत्र स्थान्तरण करने की कार्रवाई कर रही है।
इससे पूर्व भवन न बनने का कारण चिरबटिया मे कृषि महाविद्यालय को बताया गया था, क्योकि जिस स्थान पर आई टी आई के भबन का निर्माण किया जाना था उस स्थान पर कृषि महाविद्यालय के चाहरदीवारी परिसर के भीतर घेराबंदी के समय आ गया था, लेकिन जिलाधिकारी के कार्यवाई के बावजूद राजकीय औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान का भवन निर्माण जिस जगह पर होना था उस चयनित जगह आई टी आई के सर्पुद कर दी गयी, इस स्थान को कृषि महाविद्यालय ने लगभग तीन माह पूर्व नियमानुसार आई टी आई को दे दी थी, लेकिन आज तक सरकार ने आई टी आई के भवन बनाने की जरूरत नही समझी, इससे पूर्व भले ही ये बहाना था कि हमारी जमीन कृषि महाविद्यालय के पास है, तो फिर हम भवन कैसे बनाये मगर अब तो जगह भी मिल चुकी है फिर बिभाग द्वारा भवन निर्माण क्यो नही करवाया जा रहा क्षेत्रीय जनता का कहना है कि इतने सालो से भवन का निर्माण न किया जाना दुरस्त क्षेत्र की जनता के प्रति सरकारों की उदासिनता ही है, सामाजिक कार्यकर्ता रामरतनपंवार, पूर्व क्षेत्रपंचायत सदस्य लौगा देवी, पूर्व प्रधान रूप सिंह मैहरा, त्रिलोक सिंह कैन्तूरा, प्रेम सिह मेहरा आदि ने कहा है कि यदि विभाग यथाशीघ्र भवन निर्माण नही करवाता है तो जनता के द्वारा उग्र आन्दोलन किया जायेगा।