बूढ़ाकेदार- 500 सालों से टिहरी-उत्तरकाशी के 180 गांव के लोग मिलकर मंगसीर में मना रहे हैं दिपावली!
![]() |
| फोटो- कैलापीर मंगासीर दीपावली पर जगमगाता प्राचीन बूढाकेदार मंदिर। |
मनमोहन सिंह रावत/बूढाकेदार घनसाली।
भगवान शिव के प्राचीन धामों में से एक बूढ़ाकेदार में कार्तिक नही बल्कि दीपावली के एक माह बाद मंगसीर माह में मनाई जाती है, ये परम्परा 500 साल पुरानी है जिसे आज भी निभाया जा रहा है, इस बार भी बूढ़ाकेदार में श्री गुरु कैलापीर देवता के निशान के साथ भक्तों के दौड़ लगाते ही तीन दिवसीय ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ हो गया। थाती-कठुड़ पट्टी के सैकड़ों लोगों ने गुरु कैलापीर देवता के निशान के साथ पुंडारा के खेतों में सात चक्कर दौड़ लगाकर क्षेत्र और परिवार की खुशहाली के लिए मन्नतें मांगी।
बूढाकेदार में टिहरी और उत्तरकाशी जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों 90 जोला, थाती कठूड, नेड कठूड, गाजणा कठूड के ईष्ट आराध्या देव गुरू कौलापीर देवता की तीन दिवसीय दिवाली बगवाल महोत्सव शुरू हो चुका है, पवित्र नदि बालगंगा और धर्मगंगा के संगम पर बूढ़ाकेदार में तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेले शुरू हो चुका है, बीते मंगलवार देर रात्रि तक बड़ी दीपावली पर लोगों ने पटाखे और भैले खेलकर बग्वाल को यादगार बनाया। 1001 भैलों के साथ ग्रामीणों ने बग्वाल खेली। महिलाओं और बच्चों ने मेले में खरीदारी की। विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी विभागों की ओर से स्टाल लगाए गए। कैलापीर मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए सुबह से ही दूर-दराज क्षेत्रों से भक्तों का पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। दोपहर को दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्रों से भक्तगण ढोल-दमाऊं के साथ सीटी बजाते हुए मंदिर परिसर पहुंचे। ठीक एक बजे ढोल-नंगाड़ों की थाप पर देवता को विधि विधान के साथ मंदिर से बाहर लाया गया। दो बजे देवता के पश्वा निशान के साथ निकटवर्ती पुंडारा के खेतों में पहुंचे। देवता के साथ सैकड़ों लोगों ने पुंडारा के खेतों में देवता के झंडे के साथ चक्कर लगाने शुरू किए। सात चक्कर तक हर कोई देवता के निशान के साथ खेतों में भागता रहा। उसके बाद भक्त खेतों में रखे पुवाल एक-दूसरे पर फेंकते रहे।
देखें विडियो- बूढ़ाकेदार मंगसीर बगवाल
सौजन्य-MGV DIGITAL
बूढाकेदार में टिहरी और उत्तरकाशी जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों 90 जोला, थाती कठूड, नेड कठूड, गाजणा कठूड के ईष्ट आराध्या देव गुरू कौलापीर देवता की तीन दिवसीय दिवाली बगवाल महोत्सव शुरू हो चुका है, पवित्र नदि बालगंगा और धर्मगंगा के संगम पर बूढ़ाकेदार में तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेले शुरू हो चुका है, बीते मंगलवार देर रात्रि तक बड़ी दीपावली पर लोगों ने पटाखे और भैले खेलकर बग्वाल को यादगार बनाया। 1001 भैलों के साथ ग्रामीणों ने बग्वाल खेली। महिलाओं और बच्चों ने मेले में खरीदारी की। विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी विभागों की ओर से स्टाल लगाए गए। कैलापीर मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए सुबह से ही दूर-दराज क्षेत्रों से भक्तों का पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। दोपहर को दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्रों से भक्तगण ढोल-दमाऊं के साथ सीटी बजाते हुए मंदिर परिसर पहुंचे। ठीक एक बजे ढोल-नंगाड़ों की थाप पर देवता को विधि विधान के साथ मंदिर से बाहर लाया गया। दो बजे देवता के पश्वा निशान के साथ निकटवर्ती पुंडारा के खेतों में पहुंचे। देवता के साथ सैकड़ों लोगों ने पुंडारा के खेतों में देवता के झंडे के साथ चक्कर लगाने शुरू किए। सात चक्कर तक हर कोई देवता के निशान के साथ खेतों में भागता रहा। उसके बाद भक्त खेतों में रखे पुवाल एक-दूसरे पर फेंकते रहे।
![]() |
| फोटो- पुंडारा के खेतों में देवता के झंडे के साथ दौड़ लगाते भक्त। |
ये है प्राचीन मान्यता
मान्यता है कि सोलवी शताब्दी मे ठीक दिवाली के समय गोरखाओ ने जब गढ नरेश महीपाल शॉह पर आक्रमण किया था उस समय गुरू कैलापीर देवता अपनी सेना को लेकर गढ नरेश का साथ देकर गोरखाओ को चारो खाने चित कर दिया था, परिणाम स्वरूप गोरखा राजा को मुह कि खानी पडी, इस जीत पर खुश होकर गढनरेश ने गुरू कौलापीर देवता को 180 गॉव नेड कठूड, गाजणा कठूड, थाती कठूड जगीर स्वरूप भेट में दी थी, युद्ध के समय चूँकि दीपावली थी, और इन गॉव के लोग देवता के साथ युद्ध मे शामिल थे इस लिए उस समय क्षेत्र मे कार्तिक माह की दिवाली नही मनाई जा सकी युद्ध जीत कर ठीक 1 माह बाद जब घर पहुचे तब यह दीपावली बडे धूम धाम से मनाई गई टिहरी, उतरकाशी के इन गॉव मे यह परम्परा पिछले 500 वर्षो से चली आ रही है जो आज भी बदस्तूर जारी है।

