सोया वन विभाग: कब्जा कर बाड़े जा रहे जंगल! ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन व भेड़-बकरी व्यवसाय हुआ चौपट..

सोया वन विभाग: कब्जा कर बाड़े जा रहे जंगल ! ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन व भेड़-बकरी व्यवसाय हुआ चौपट..
 कब्जा कर बाड़े जा रहे जंगल
पहाड़ी खबरनामा।
रूद्रप्रयाग। देवभूमि के पहाडी क्षेत्र के गावं प्राचीन काल से ही स्वाबलम्बी रहे हैं, पहाड़ में ग्रामीणों की आर्थिकी में पशुपालन व भेड़-बकरी व्यवसाय सबसे मजबूत स्तम्भ रहा है लेकिन आज कुछ स्वार्थी लोगों के कारण व वन विभाग की उदासिनता आज गांव में भेड़-बकरी व्यवसाय चैपट हो गया है। और अगर वन विभाग व प्रशासन के अधिकारी इसी तरह सोये रहे तो वह दिन दूर नही जब पशुपालन व भेड़-बकरी व्यवसाय बीते दिनों कि बात हो जायेगी।


देवभूमि के गांव की आर्थिकी की रीढ़ माने जाने वाले पशुपालन व भेड़-बकरी पालन पहाड़ के लोगों के लिए सबसे फायदेमद व्यवसाय माना जाता रहा है, भेड़-बकरी पालन व्यवसाय पहले भी फायदेमन्द व्यवसाय था ओर आज तो बकरीयों के मीट व पशुओं के दुध के आसमान छुते मूल्य ने इसे और फायदेमन्द बना दिया है लेकिन बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन व भेड़ बकरी पालन दिन-प्रतिदिन खत्म होता जा रहा है, जिला मुख्यालय के आसपास के गांव तो छोड़ ही दिजिए दूरदराज के गांवों में भी भेड़ बकरी पालन करना अब ग्रामीणों के लिए असम्भव सा होता जा रहा है।

पशुपालन व भेड़ बकरी पालन व्यवसाय खत्म होने का सबसे बड़ा कारण कब्जा होते जंगल हैं, दरअसल पहले जंगलों पर हर ग्रामीण का हक होता था, लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों ने जंगलों में बाड़ने (कब्जे) का नया फाॅमूला निकाला, इसके लिए ऐसे स्वार्थी लोग अपने गांव के जंगलों को पत्थरों या चारबाड़ से घेर लेते हैं ओर उस पर उसके बाद अपना होने का दावा करने लगते हैं जिसके बाद अन्य लोग भी देखा देखी इसी तरह जंगलों को घेरने लगते है ओर फिर छुटे हुए लोगों के लिए बिना घास पत्ती व जंगलों के पशुपालन व भेड़-बकरी व्यवसाय करना मुश्किल हो जाता है, और आज इसी तरह तमाम गांवों के जंगल घेरे जा चुके हैं, जिसपर न ही वन विभाग कोई कार्यवाही करता है ओर न प्रशासन।


इसका प्रभाव गांवों में साफ देखा जा सकता है, जहाॅ पहले हर परिवार दुधारू पशुओं के साथ ही भेड़-बकरी भी पालता था, वही अब ग्रामीणों ने जंगल कब्जे होने के बाद भेड-बकरी पालना जहाॅ पूरी तरह से बन्द कर रहे हैं, वही पशुओं की संख्या भी घटने लगी है, अब न भेड़ के ऊन के वो पारम्परिक कपड़े देखने को मिलते है न ही गांव में दुध रह गया है 


यही मूल कारण है कि जीवन के संसाधन जंगलों में कब्जे होने के कारण गांव से लगातार लोग पलायन भी कर रहे हैं, लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि इस ओर जिले से लेकर प्रदेश के उच्च अधिकारियों का यहाॅ तक की हमेशा जंगल जंगल करने वाले वन विभाग के अधिकारियों की नजर नही पड़ रही है।

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