उत्तर भारत में एकमात्र कार्तिकेय का मंदिर, जहाॅ पूजी जाती है हड्डियाँ! आजकल हुआ यहाॅ महायज्ञ..

कार्तिक स्वामी में 11 दिवसीय महायज्ञ व शिव महापुराण कथा का शनिवार को जल कलश यात्रा के साथ समापन। 

कार्तिकेय का मंदिर
उत्तर भारत में एकमात्र कार्तिकेय का मंदिर

रिपोर्ट-हरीश चंद्र ऊखीमठ।  क्रोध पर्वत के शीर्ष पर विराजमान देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी के तीर्थ में चल रही 11 दिवसीय महायज्ञ व शिव  कथा का शनिवार को पूर्णाहुति के साथ धार्मिक अनुष्ठान का समपन्नं हो गया इस 11 दिवसीय महायज्ञ व शिव महापुराण में चल रही कथा में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रतिभाग पुण्य अर्जित किया। बता दे कि इस महायज्ञ व शिव महापुराण में 33 करोड़ देवी देवताओं का आहवान कर विश्व कल्याण व क्षेत्र की खुशहाली की कामना की गयी, जिसमे समस्त गांव वासियो का सहयोग रहा इस अवसर पर केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने भी महायज्ञ व शिव महापुराण में प्रतिभाग किया और उनोने कहा कि कार्तिक स्वामी तीर्थ में कुछ समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है जिनके निराकरण के लिये सामूहिक प्रयास किये जायेंगे। इस मौके पर प्रबन्धक पूर्ण सिंह नेगी, अध्यक्ष शत्रुध्न सिंह नेगी, उपाध्यक्ष बिक्रम सिंह, कोषाध्यक्ष चन्द्र सिंह नेगी, सचिव बलराम सिंह, रघुबीर सिंह नेगी, भारत सिंह नेगी, बलदेव सिंह नेगी, भक्त दर्शन रावत, लछमण सिंह नेगी, सुरेंद्र सिंह नेगी सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं मौजूद थे। 
केदारनाथ विधायक मनोज
केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने भी महायज्ञ व शिव महापुराण में प्रतिभाग किया

कार्तिक स्वामी मंदिर का इतिहास एवम् मान्यता 

कार्तिक स्वामी मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में कनक चैरी गाँव से 3 कि.मी. की दुरी पर क्रोध पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शक्तिशाली हिमालय की श्रेणियों से घिरा हुआ है। कार्तिक स्वामी मंदिर रुद्रप्रयाग जिले का सबसे पवित्र पर्यटक स्थलों में से एक है। यह मंदिर उत्तराखंड का सिर्फ एकमात्र मंदिर है, जो कि भगवान कार्तिक को समर्पित है। भगवान कार्तिकेय का अति प्राचीन “कार्तिक स्वामी मंदिर” एक दैवीय स्थान होने के साथ साथ एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटक स्थल भी है। मंदिर भगवान् शिव के जयेष्ठ पुत्र “भगवान कार्तिक” को समर्पित है भगवान कार्तिक स्वामी को भारत के दक्षिणी भाग में “कार्तिक मुरुगन स्वामी” के रूप में भी जाना जाता है । 
क्रोध पर्वत पर स्थित इस प्राचीन मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय आज भी यहां निर्वांण रूप में तपस्यारत हैं। मंदिर में लटकाए सैकड़ों घंटी से एक निरंतर ध्वनी वहाॅ से करीब 800 मीटर की दूरी तक सुनी जा सकती है। यह मंदिर बारह महीने श्रद्धालुओं के लिये खुला रहता है और मंदिर के प्रांगण से चैखम्बा, त्रिशूल आदि पर्वत श्रॄंखलाओं के सुगम दर्शन होते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर भी दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां निसंतान दंपति दीपदान करते हैं। यहां पर रातभर खड़े दीये लेकर दंपति संतान प्राप्ति की कामना करतेे हैं, जो फलीभूत होती है। कार्तिक पूर्णिमा और जेठ माह में आधिपत्य गांवों की ओर से मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान भी किया जाता है।
शिव  कथा
11 दिवसीय महायज्ञ व शिव  कथा का शनिवार को पूर्णाहुति के साथ धार्मिक अनुष्ठान का समपन्नं 

कार्तिक स्वामी मंदिर की पौराणिक कथा

कार्तिक स्वामी मंदिर के बारे में पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को भगवान कार्तिक और भगवान गणेश से यह कहा कि उनमें से एक को पहले पूजा करने का विशेषाधिकार प्राप्त होगा , जो सर्वप्रथम ब्रह्मांड का परिक्रमा (चक्कर) लगाकर उनके सामने आएगा। भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर विश्व परिक्रमा को निकल पड़े। जबकि गणेश गंगा स्नान कर माता-पिता की परिक्रमा करने लगे। गणेश को परिक्रमा करते देख शिव-पार्वती ने पूछा कि वे विश्व की जगह उनकी परिक्रमा क्यों कर रहे हैं तो गणेश ने उत्तर दिया कि माता-पिता में ही पूरा संसार समाहित है। 
यह बात सुनकर शिव-पार्वती खुश हुए और भगवान गणेश को पहले पूजा करने का विशेषाधिकार प्राप्त दिया द्य इधर विश्व भ्रमण कर लौटते समय कार्तिकेय को देवर्षि नारद ने पूरी बातें बताई तो , कार्तिकेय नाराज हो गए और कैलाश पहुंचकर उन्होंने अपना मांस माता पार्वती को और शरीर की हड्डिया पिता ह्सिव जी को सौंप निर्वाण रूप में तपस्या के लिए क्रोध पर्वत पर पहुँच गए। तब से भगवान कार्तिकेय इस स्थान पर पूजा होती है और यह माना जाता है कि ये हड्डियाँ अभी भी मंदिर में मौजूद हैं जिन्हें हजारों भक्त पूजते हैं।

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