ये है बाबा जी की करुणा भरी कहानी, जरूर पढ़े

बाबा जी की करुणा भरी कहानी
बाबा जी की करुणा भरी कहानी
सचितानन्द सेमवाल की कलम से.....✎
प्रत्येक मनुष्य के जीवन की तरह तरह की अपनी- अपनी कहाँनियां होती हैं। आज ज्वाल्पादेवी देवी धाम पौड़ी गढ़वाल के राजमार्ग पर सायंकाल भ्रमण के समय मुझे अपने भूतपूर्व छात्र के साथ एक महात्मा जी मिले (दोनो चित्र में हैं।)। मैंने बाबा जी से उनके बारे में बचपन से जानने की कोशिश की तो उन्होंने मुझको इस प्रकार बताया.........

मेरा जन्म हरियाणा के एक गांव में खूब जमीन जायदाद वाले परिवार में हुआ था। जब मैं मात्र 5 वर्ष का था तो मेरी माता जी बहुत बीमार पड़ गयीं। मेरे पिता जी उनको मेरे साथ एक अस्पताल में ले आये। एक दिन बहुत बीमार पड़ने पर मेरे घुटने में अपना सिर रखे हुए माता जी ने मुझसे कहा कि बेटा, तू महात्मा बन जाना, नहीं तो जमीन जायदाद के लिए तेरे चाचा- ताऊ तुझे मार डालेंगे। इतना कहते ही उन्होंने शरीर छोड़ दिया।
-----विज्ञापन-----

मेरी अवस्था उस समय कुल पांच वर्ष की थी, लेकिन मां की बात मानते हुए मैं घर छोड़ते हुए वहाँ से नजदीक दिल्ली में एक आश्रम में आ गया। लगभग 11 वर्ष बाद एक बार अपने घर वापस आया, तो पिता जी ने मेरे बारे में पूछा कि इतने दिन कहाँ था। मैंने उन्हें सब कुछ बताया।

एक दिन पिता जी को तेज बुखार आया और वे भी दुनियां से चल बसे। मैं उनकी इकलौती सन्तान था। गांव वालों के सहयोग से उनका क्रिया कर्म करने के बाद मां के वचनों को याद करते हुए फिर मैं घर से चला गया। भटकते भटकते मैं जम्मू-कश्मीर पहुंच गया। वहाँ जम्मू में जूना अखाड़े के एक सन्त से मेरी भेंट हुई और उन्होंने मुझे अपना शिष्य बना लिया। मैंने उनकी 38 वर्षों तक ऐसी सेवा की कि वैसी आजकल के शिष्यों को करनी मुश्किल है। 123 वर्ष की दीर्घायु में उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया है।
जम्मू में हमारा बहुत बड़ा आश्रम है। मैं वहाँ से आज से लगभग 20 साल पहले गढ़वाल आया और 8 साल तक कार्तिक स्वामी, रुद्रप्रयाग में रहा। 2004 में मैं वहाँ से सतपुली आया और वहाँ के एक शिवालय में 4-5 वर्ष रहा और अब ज्वाल्पा धाम में रहता हूं।
मेरी आवस्था 74 वर्ष की है, लेकिन मैं बहुत चुस्त हूं। जन्मभूमि हरियाणा के ग्राम प्रधान ने मुझे बताया कि मेरे नाम मकान व कुछ जमीन है, जिसकी कीमत 20 लाख देने को लोग तैयार हैं, तो मैंने उसको कहा कि गांव में जो सबसे गरीब हो उसके नाम उनको कर देना और तब वह मकान एक गरीब महिला को दे दिया गया। बाकी जमीन जायदाद चाचा-ताऊ लोगों ने हड़प ली थी!
मैं कई विद्यार्थियों को पढ़ा चुका हूं। कई मन्दिरों का जीर्णोद्धार व असहायों, छात्रों की मदद करता ह़ूं। हमारा अखाड़ा गरीब कन्याओं की शादी भी करवाता है।
ज्वाल्पादेवी मन्दिर के पीछे भेरों मन्दिर में मार्बल की फर्श  इन्होंने ही डलाई थी। बाबा जी के साथ ANKIT BAHUKHANDI जी हमारे संस्कृत विद्यालय चैधार के भूतपूर्व होनहार छात्र हैं। संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग से उनकी आचार्य की पढ़ाई करने में इन्हीं महात्मा जी की ही प्रेरणा है। अभी भी बाबा जी का बहुखण्डी पर पूरा आशीर्वाद है।
मोटर मार्ग पर जो भी गाड़ी गुजर रही थी, तो उसमें बैठे लोग बाबा जी को प्रणाम कर रहे थे। बाबा जी से और भी कुछ बातें हाथ लगतीं, लेकिन वापसी में माता ज्वाल्पादेवी के मन्दिर का मुख्य द्वार आ गया था, मैंने बाबा जी को कहा कि आपका जीवन बहुत बहुत धन्य है!!
-----विज्ञापन-----

खबर पर प्रतिक्रिया दें 👇