आईना:- भाषा के विषयों में 100% अंक कितने सही!

सीबीएसई की देश में 2019 कई 12 वीं परीक्षा की 2nd टॉपर
सचिदानंद सेमवाल/स्वत्रंत लेखक।
स्वत्रंत लेखक
लेखक- सचितानंद सेमवाल
आज के छात्र पता नहीं कितने जीनियस हो गए हैं? इस बार का CBSE के रिजल्ट के बाद समझ ही नहीं आ रहा है। गणित-विज्ञान को छोड़कर हिंदी और अंग्रेजी जो कि भाषाएं हैं, अच्छे- अच्छे महारथी भी उनके निबन्धात्मक प्रश्नपत्रों में सौ में सौ अंक नहीं ला सकते। क्या इन टॉपर्स ने कहीं पर एक भी ह्रस्व इ या दीर्घ ई में गलती नहीं की! क्या इन्हें पूरा व्याकरण का पता है!! क्या ये समास, सन्धि- विच्छेद, कारक सबमें पारंगत हैं! क्या इनके लिए अलंकार, उपमा, गद्य, पद्य बिल्कुल धूल के बराबर हैं!!! 
हिंदी साहित्यकार
आज अच्छे- अच्छे साहित्यकार और कवियों के लिए बहुत ही अजीब सी स्थिति है। भाषा का दस बीस प्रतिशत ही किसी विद्वान् से भी विद्वान् को ज्ञान होगा, शायद बड़े से बड़े हिंदी और अंग्रेजी के ज्ञाता को! शेक्सपीयर ने कहा था कि पृथ्वी के समस्त बालू के कण जैसे अंग्रेजी भाषा के ज्ञान में मुझे उसके एक कण के बराबर भी ज्ञान नहीं है!!
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मेरे विचार से यह अच्छी स्थिति नहीं है। इस तरह बच्चे भाषा के ज्ञान को बहुत ही हल्के में लेंगे। आगे चलकर अच्छे साहित्यकारों, उपन्यासकारों और कवियों की बहुत ही ज्यादा कमी हो जायेगी। अंग्रेजी स्कूल तो वैसे ही हिंदी भाषा को कोई महत्व नहीं देते और इस तरह अंक बाँटने से इस भाषा की अहमियत और भी कम हो जाएगी। आज कुछ बच्चों को 500 में 499 और 498 अंक दे दिये गए हैं। क्या सच में कोई इतने अंक ला सकता है? यह सोचने और मंथन करने की बात है। अब इससे आगे इन बच्चों को करने के लिए बचा ही क्या है? इसी तरह एक छात्रा को गायन या वादन में सौ में सौ अंक दिए गए हैं। विस्मय अलंकार दादा ने बिल्कुल सही लिखा था, इनके आगे तानसेन भी शरमा जाएंगे। क्या ये बच्चे मुंशी प्रेमचंद जी, महादेवी वर्मा जी, विलियम शेक्सपियर से भी ज्यादा महान विद्वान् हैं ??? 
यदि उत्तर अशुद्ध अथवा शुद्ध लिखने पर उतने ही   अंक, तो फिर सही उत्तर का कोई मूल्य नहीं!!! 
"शिक्षा की इस प्रकार की मूल्यांकन पद्धति में सुधार की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है, नहीं तो संस्कृत भाषा की तरह हिंदी का भी अस्तित्व खत्म हो जायेगा "
-श्री धीरेन वंशीधर जी की बिल्कुल सही चिन्ता।

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