पंचायत चुनाव : पंचायती राज संशोधन विधेयक से जनप्रतिनिधियों में आक्रोश ! उठाए कई सवाल!

पंचायती राज संशोधन विधेयक से जनप्रतिनिधियों में आक्रोश ! उठाए कई सवाल! 

पंचायत चुनाव

वाचस्पति रयाल
नरेंद्र नगर। बीते बुधवार को उत्तराखंड विधानसभा में पारित पंचायत राज संशोधन अधिनियम 2019 का यहां जनप्रतिनिधियों ने खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है। पंचायती राज संशोधन विधेयक से जनप्रतिनिधियों में आक्रोश दिख रहा है।  उल्लेखनीय है कि आगामी पंचायत चुनाव की तैयारी में प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्यों व प्रमुखों, जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे ऐसे लोग जिनकी दो से अधिक संतानें हैं, इन सभी जनप्रतिनिधियों के लिए उत्तराखंड सरकार का पंचायती राज संशोधन विधेयक बुरे सपने जैसा है, उत्तराखंड विधानसभा में पारित पंचायती राज संशोधन विधेयक अधिनियम 2019 जिसमें दो से अधिक जीवित बच्चे वाले को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की दौड़ से बाहर करने का फैसला किया गया है, ये उन चुनाव लड़ने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए बड़ा झटका है जो इस दायरे में आते हैं।


पंचायती राज संशोधन विधेयक में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए रखी गई शैक्षिक योग्यता का तो जनप्रतिनिधियों ने स्वागत किया है, मगर दो से अधिक जीवित बच्चे वालों को चुनाव की दौड़ से बाहर करना तथा दो बच्चों के लिए समय सीमा का निर्धारण न किया जाने वाले इस पंचायती राज संशोधन विधेयक 2019 का जनप्रतिनिधियों ने खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है और कहा है कि सरकार ने आनन-फानन में इस तरह का बिल विधानसभा में पारित करके बड़ी मुसीबत मोल ली है, जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि इसमें संशोधन नहीं होता तो पंचायत चुनाव में प्रदेश सरकार को इसका जबरदस्त खामियाजा भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। पहाड़ी खबरनामा के वरिष्ट संवाददाता वाचस्पति रयाल में नरेन्द्रनगर में कई जनप्रतिनिधियों से इस पर राय जनानी चाही तो तो बात जनप्रतिनिधियो ने कही वो आपको बताते हैं।

पंचायती राज संशोधन विधेयक पर क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि


विरेन्द्र सिंह कण्डारी
नरेन्द्रनगर के पूर्व ब्लाक प्रमुख विरेन्द्र सिंह कण्डारी का कहना है कि शहरी विकास मत्रांलय ने जिस तरह से निकायों में भी दो बच्चों का नियम लागू किया, ओर उससे साफ तौर पर 2003 के बाद से ये नियम लागू करना स्पष्ट किया, लेकिन पंचायती राज संशोधन विधेयक में सीमा नही की, अगर इसमें दो बच्चों को लेकर समय निश्चित किया जाता तो बेहतर होता। नगर पंचायत ,नगर पालिका और महानगर पालिका जैसे स्थानीय निकाय चुनाव में दो बच्चों पर वर्ष 2003 समय सीमा निर्धारित की गई है, तो फिर इस तरह की शर्त त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में क्यों नहीं लागू की गई? 



सरदार सिंह पुण्डीर
पूर्व जिला पंचायत सदस्य और वर्तमान में यूकेड़ी के केन्द्रीय सचिव सरदार सिंह पुण्डीर का कहना है कि पंचायती राज संशोधन विधेयक  में तो सरकार ने इसे लागू कर दिया लेकिन विधानसभा व लोकसभा में ये पहले लागू किया जाना चाहिए था, पंचायतों पर ये नियम जबरदस्ती थोपा जा रहा है, छोटे पंचायत स्तर के नेताओं से मनमानी की जा रही है जबकि बड़े नेताओं पर इस तरह के दो बच्चों वाले नियम और शैक्षिक योग्यता वाले नियम को लागू करने की सरकार की हिम्मत नही हैं। 



कमल सिंह रावत
ग्राम प्रधान व ग्राम प्रधान संगठन के ब्लाक अध्यक्ष कमल सिंह रावत का कहना है कि नेता छोटा हो या बड़ा हो सभी पर एक जैसे नियम लागू होने चाहिए, क्या सरकार ऐसा चाहती है कि पंचायत स्तर के नेता तो 2 बच्चे पैदा करें और बड़े नेताओं को कितने भी बच्चे पैदा करने की आजादी है, अगर सरकार की मंशा साफ है तो एमपी और एमएलए को भी दो बच्चों और शैक्षिक योग्यता की सीमा में ला कर दिखाए। 




सुमन पुण्डीर
जिला पंचायत सदस्य सुमन पुण्डीर का कहना है कि सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों से एक भद्दा मजाक किया है, देश में नियम कानून सभी के लिए समान होने चाहिए, फिर चाहे वो प्रधान हो, क्षेत्र पंचायत सदस्य हो या जिला पंचायत सदस्य, या फिर एमएलए या एमपी, सरकार पंचायत में ऐसे नियम लागू कर छोटे पंचायत स्तर के नेताओं से भेदभाव कर रही है, जिसका परिणाम सरकार को आने वाले समय में भुगतना पड़ेगा। 



शकुंतला रतूड़ी
जाखणीधार विकासखण्ड की जिला पंचायत सदस्य शकुंतला रतूड़ी का कहना है कि पंचायती राज संशोधन विधेयक पारित करने से भ्रूण हत्याएं ओर बढ़ेंगी, कई लोग पंचायत चुनाव से बाहर होने के डर से भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध कर सकते हैं, सरकार ने बिना सोचे बिचारे पंचायतों पर इसे लागू कर सामाजिक तानाबाना का भी ख्याल नही रखा है, जब सरकार बगैर सोचे समझे आनन-फानन में इस तरह का बिल पारित करेगी तो उससे जनहित के कार्यों में व्यवधान होगा और सामाजिक क्षेत्र में गड़बड़ियां और गहरा जाएगी।

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