असली निराश्रित गरीब जरूरतमन्द, इनकी नही किसी को खबर अधिकारीयों की भी नही पड़ी नजर |
रामरतन पंवार |
जखोली। जखोली बिकासखंड के अन्तर्गत ग्राम पंचायत बुढना के रहने वाले जीत सिंह रावत की जिंदगी की अजीबोगरीब कहानी है। जीत सिंह रावत से मुलाकात के दौरान अपनी जिंदगी को कई बिपरीत परिस्थितियों मे गुजरने की कहानी मैने सुनी, ओर उनके गांव मे जाकर देखा। जीत सिंह का बायां पैर किसी बिमारी के कारण खराब हो गया था। जिस कारण से पैर को घुटने से काटना पड़ा और वे विकलांग हो गये। जिसके बाद किसी तरह से जीत सिंह ने विकलांगता की स्थिति मे गरीबी से संघर्ष कर अपने परिवार का पालन पोषण किया। भले ही उनको विकलांग पेशंन के रूप मे एक हजार रुपए भी सरकार द्वारा दिया जाता है मगर जिंदगी की गाड़ी चलाने हेतु इतना काफी नही।
जीत सिंह से जिन्दगी में मात्र इतने ही बरे दिन नही देखने थे उनके जिन्दगी में दुखों का पहाड़ तब फिर टूटा जब उनके बूढापे का सहारा उनका 23 साल का जवान बेटा भगवान को प्यारा हो गया, उन्होने 21 साल की उम्र मे अपने बेटे की शादी भी कर दी लेकिन खुदा को कुछ और ही मंजूर था तथा शादी के तीन साल के बाद उनका बेटा दुनिया छोड़कर चला गया, कुछ समय बाद बहू भी ससुराल से अन्य जगह चली गई और अब जीत सिंह व उनकी पत्नी गोदांबरी देबी घर मे अकेले अपनी तनहायी में जीवन जीने लगे।
लेकिन इस सब के बावजूद भी जीत सिंह व उनकी पत्नी ने न हिम्मत हारी न हार मानी, ओर अपने आजीविका के साधन मे जुट गये। आज दोनो बकरियो को चुगां कर.अपनी आजीविका चलाते है। बड़ी मुश्किल से सरकार ने भी मदद के रूप मे एक आवास तो दे दिया है, लेकिन उम्र भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है, और हालात ओर बदतर, जीत सिंह का कहना है कि मैने आर्थिक सहायता हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री से भी कई बार गुहार लगाई लेकिन कोई सहायता नही दी गई। आज भी उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय बनी हुई है। जीत सिंह रावत की स्थिति के बारे मे आज तक शासन प्रशासन ने कभी सुध ली ही नही, ऐसे में आखिर सवाल उठता है कि आखिर गरीब, निराश्रित शोषित की बात करने वाले जनप्रतिनिधि ओर अधिकारीयों की नजर जीत सिंह जैसे जरूरतमन्द लोगों तक क्यों नही पहुचती, ऐसे में क्या कभी कोई जीत सिंह की सुध लेगा!