जानिए! कौन हैं शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज, जिनकी पुण्य स्मृति में आज आ रहे हैं सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत..

शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज

शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज


जानिए! उत्तराखण्ड मूल के पहले शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज के बारे में

राजेश नेगी। शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज वैसे तो किसी पहचान के मोहताज नही, लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जो आप उनके बारे में नही जानते होगे, दुनिया भर में वेदांत व संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वानों में वे अग्रिण थे, साथ ही पहले उत्तराखण्ड़ मूल के शंकराचार्य थे जो कि आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारधामों में से सर्वोच्च भगवान बद्रीनाथ धाम के जोशीमठ तीर्थ स्थित ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य रहे हैं। शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम महाराज काफी लम्बे समय से बीमार रहे जिसके बाद 20 अक्टूबर 2017 को उन्होने चण्ढ़ीगढ के पीजीआई अस्पताल में अन्तिम सांस ली थी। स्वामी माधवाश्रम जी महाराज ने अपने जीवन में अपने शिष्यों को चार सूत्र दिये, गाय, गंगा, चोंटी ओर बेटी इन चार सूत्रों पर शंकाराचार्य जी अपने आप भी जीवन भर काम करते रहे वे इन चार सूत्रों को हिन्दु धर्म की रक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानते थे।  

शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज का जन्म स्थान व शिक्षादीक्षा। 

शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अन्तर्गत अगस्तमुनि विकासखण्ड़ के बेंजी ग्राम में हुआ था, इनका मूल नाम केशवानन्द था। आरम्भिक विद्यालयी शिक्षा के पश्चात इन्होंने हरिद्वार, अम्बाला में सनातन धर्म संस्कृत कॉलेज, वृंदावन में बंशीवट में श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के आश्रम एवं वाराणसी समेत देश के विभिन्न स्थानों पर वेदों एवं धर्मशास्त्रों की दीक्षा ली और संन्यास ग्रहण की थी। स्वामी माधवाश्रम महाराज की विद्वता को देखते हुए धर्म संघ के तत्वाधान में धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी के आशीर्वाद से जगन्नाथ पुरीपीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी ने उन्हें ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया था। शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज धर्मप्रचार एवं गौहत्या विरोधी विभिन्न आंदोलनों एवं संगठनों से जुड़े थे।

जानिए आखिर क्या होता है शंकराचार्य का पद

शंकराचार्य  आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो कि बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। यह उपाधि आदि शंकराचार्य, जो कि एक हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे एवं जिन्हें हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर जाना जाता है, के नाम पर है। उन्हें जगद्गुरु के तौर पर सम्मान प्राप्त है एक उपाधि जो कि पहले केवल भगवान कृष्ण को ही प्राप्त थी। उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है। यह पद अत्यंत गौरवमयी माना जाता है। ये हैं भारत के चार मठ- 
1- श्रृंगेरी मठ श्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण में चिकमंगलुुुर में स्थित है।
2- गोवर्धन मठ गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है।
3- शारदा मठ शारदा यकालिकाद्ध मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। 
4- ज्योतिर्मठ उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ।

जानिए इस कठिन प्रक्रिया से चुने जाते हैं शंकराचार्य

दशनामी अखाड़े के प्रमुख, अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर और स्थापित संतों की सहमति के बाद शंकराचार्य का चयन होगा, इस पर काशी विद्वत परिषद की मुहर भी लगेगी। इसके बाद शंकराचार्य की पदवी विधिवत हासिल हो पाएगी, हालांकि, देश में अंग्रेजों के राज के समय यह परंपरा टूट गई थी। बाद में शंकराचार्य स्वयं ही उत्तराधिकारी बनाने लगे। उनके शिष्य ही शंकराचार्य बनने लगे। अखाड़ों एवं काशी विद्वत परिषद की भूमिका दर्शक की तरह रह गई। कई बार इसे लेकर विवाद भी हुए। चार मठों के अतिरिक्त भी भारत में कई अन्य जगह शंकराचार्य पद लगाने वाले मठ मिलते हैं। यह इस प्रकार हुआ कि कुछ शंकराचार्यों के शिष्यों ने अपने मठ स्थापित कर लिये एवं अपने नाम के आगे भी शंकराचार्य उपाधि लगाने लगे। परन्तु असली शंकराचार्य उपरोक्त चारों मठों पर आसीन को ही माना जाता है।

ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य को लेकर अभी तक विवाद

ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य पद को लेकर अभी तक भी विवाद बना हुआ है, बद्रिकाश्रम ज्योतिर्मठ ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य होने का दावा करने वाले तीन सन्त थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और स्वामी माधवाश्रम जी महाराज, तीनों के बीच लम्बे समय तक शंकराचार्य पद को लेकर जंग जारी रही थी, यहाॅ तक कि इसी कारण शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज पर एक जानलेवा हमला भी हुआ था, जिसके बाद शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के बीच काफी विवाद हुआ लेकिन ये कडवाहट स्वामी माधवाश्रम जी महाराज के बह्रमलीन होने के करीब डेढ साल पहले तब कम हुई जब शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज उनसे मिलने कोटेश्वर शिवालय में आये और जगद्गुरु शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज की कुशलक्षेम जान उनके स्वास्थ्य लाभ की कामना की, दोनों शंकराचार्यों की 37 वर्षों बाद यह भेंट हुई थी, तीनों शंकराचार्यों में से शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज सबसे विद्वान थे, इसलिए कभी उन्हे किसी ने शास्त्रात की चुनौती नही दी थी, क्योंकि ये भी शंकराचार्य चुनने की प्रक्रिया का एक हिस्सा होती है, इनकी विद्वता को देखते हुए धर्म संघ के तत्वाधान में धर्मसम्राट स्वामी करपात्री के आशीर्वाद से जगन्नाथ पुरीपीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ ने इनको ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया।

शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज की संपत्ति पर ठगों की नजर 

शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज  के पास उनके शिष्यों की दी हुई अरबों की सम्पत्ति है, रूद्रप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, दिल्ली, चंडीगढ़, वृंदावन आदि शहरों में उनकी सम्पत्ति है, उनके बह्रमलीन होने पर ऋषिकेश में उनके आश्रम के स्वामित्व को लेकर विवाद मारपीट तक पहुचा, श्रीनगर में भी उनकी अरबों की संपत्ति पर ठगों की नजर लग गई है, रुद्रपायग, ऋषिकेश, हरिद्वार, दिल्ली, चंडीगढ़ और वृंदावन आदि शहरों में मौजूद शंकराचार्य की जमीन और आश्रमों पर ठग गिद्ध की तरह नजरें गाढे बैठे हैं, आज इन्हीं की संपत्ति को खुर्दबुर्द करने के लिए कई ठग लोग घूम रहे हैं। शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज जी की सम्पति को सरकार का बचाना चाहिए। 

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