उत्तराखंड समाचार : केदारघाटी में 27 दिनों तक चला विश्व का सबसे बड़ा महायज्ञ, देवी कुष्मांडा हुई विदा...

उत्तराखंड समाचार : केदारघाटी की धार्मिक परम्परायें काफी पुरानी हैं, केदारघाटी में पड़ने वाले सिल्ला बामण गांव में साणेश्वर महाराज एवं उनकी धर्म बहन देवी कूष्मांडा का विश्व का सबसे बड़ा महायज्ञ का समापन हो गया ओर महायज्ञन के समापन पर देवी कुष्मांडा को विदा किया गया, साणेश्वर महाराज एवं उनकी धर्म बहन का महायज्ञ कुल 27 दिनों तक चला, इस महायज्ञ को 18 सालों बाद आयोजित किया गया था।
विडियो में देखे विश्व का सबसे बड़े महायज्ञ  के विडियो Report - हरिश चन्द्र 

जानिए विश्व का सबसे बड़ा महायज्ञ  में  साणेश्वर महाराज एवं उनकी धर्म बहन देवी कूष्मांडा  के बारे में

उत्तराखंड समाचार :रूद्रप्रयागः जनपद रुद्रप्राग के विकास खंड अगस्त्यमुनि के अंतर्गत मन्दाकिनी के दाहिने पार्श्व में सिल्ला गाँव है जहाँ पर स्थित है श्री साणेश्वर महादेव का मंदिर व विशेष मंदिर समूह। इस स्थान पर छत्र रेखा शिखर शैली के निर्मित चार बड़े एवं रेखा शिखर शैली के निर्मित आठ उनसे आकर में छोटे मंदिर दर्शनीय हैं ! पाषण निर्मित, काष्ट छत्र एवं कलश सुशोभित मुख्य मंदिर साणेश्वर महाराज का है!  मंदिर गर्भगृह में साणेश्वर महाराज एवं उनकी धर्म बहन कूष्मांडा और गणेश जी विराजमान हैं ! दूसरा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है! जहाँ गर्भगृह में एकमुखी शिवलिंग की प्रतिष्ठा है ! तीसरा मंदिर लक्ष्मी नारायण का है और चैथा शिवालय है ! जहाँ पुनः शिवलिंग की प्रतिष्ठा है। देवी भगवती का चतुर्थ रूप देवी कूष्माण्डा अथवा कूर्मासना सबको सुख देने वाला है। देवी कूष्माण्डा  सुख की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। देवी कूष्माण्डा का मंदिर अगस्त्यमुनि के समीप मंदाकिनी नदी के दक्षिण दिशा में कुमड़ी नामक गांव में स्थित है। भगवती कादेवी कूष्माण्डा  (कोखमाण्डा) नाम कोख से उत्पन्न होने के कारण पड़ा।
भगवती का उद्भव सिल्ला साणेश्वर महादेव मंदिर में असुरों के संहार प्रकरण से जुड़ा है। कहा जाता है कि जब महर्षि अगस्त्य दैत्यों से लड़ते-लड़ते थक गए, तो उन्होंने आदिशक्ति मां जगदम्बा का ध्यान करते हुए अपनी कोख को मलकर देवी कूष्माण्डा  का आर्विभाव किया। देवी कूष्माण्डा  ने विकराल रूप धारण कर समस्त दैत्यों का संहार किया। अंत में दो दैत्य (आतापी व बातापी) शेष बच गए। एक दैत्य कुमड़ी के समीप सिल्ली में मारा गया और दूसरा बद्रीनाथ धाम में जा छिपा। मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती)  देवी कूष्माण्डा  का वर्णन किया गया है। कुमासैंण इसी रूप का स्थानीय नाम है। कुमासैंण और साणेश्वर को भाई-बहन माना जाता है।विद्वत्ता की प्रतिमूर्ति अगस्त्यमुनि के वयोवृद्ध व्यक्ति आदरणीय श्री राजेन्द्र प्रसाद गोस्वामी जी के सानिध्य में धर्म पत्नी सहित आज दूसरी बार इस पवित्र स्थान की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री गोस्वामी जी कहते हैं कि साणेश्वर महाराज यक्षराज कुबेर हैं जो कि अल्कापुरी क्षेत्र के महाराजा थे। अल्कापुरी राज्य जनपद चमोली व जनपद रुद्रप्रयाग तक फैला हुआ था। यक्षराज कुबेर महर्षि विश्रवा के पुत्र व राक्षस राज रावण के छोटे भाई थे। रावण कुबेर का सौतेला भाई होने के कारण वह कुबेर की सुख सुविधाओं से जलता था। एक बार रावण ने कुबेर से पुष्पक विमान ✈ माँगना चाहा लेकिन कुबेर ने मना कर दिया जिस कारण रावण ने कुपित होकर कुबेर को बन्दी बनाकर वहाँ राक्षसों का पहरा लगा दिया। जिस कारण अल्कापुरी क्षेत्र में राक्षसों का आतंक फैल गया। इस पर महर्षि अगस्त्य ने कुपित होकर राक्षसों का संहार करना प्रारम्भ  कर दिया। जिनमें से दो दैत्य जो राहु के भाई (आतापी व वातापी) का संहार करने के लिए महर्षि अगस्त्य जी को अपनी कोख से भगवती कूष्माण्डा को उत्पन्न करना पड़ा। इन दो दैत्यों में से भगवती ने एक दैत्य का संहार कर दिया व दूसरा सिल्ली में मंदाकिनी  में छिप गया तदुपरांत वह(वातापी) बदरीनाथ  भाग गया, किवदन्ती है कि उस समय से बदरीनाथ में शंख ध्वनि नहीं होती है।उक्ति है कि -
शंख बाजे काल भाजे शायद इसीलिए वहाँ शंख ध्वनि नहीं होती है ताकि ये राक्षस बाहर न निकले।
देवी कूष्माण्डा  ने इस स्थान पर दैत्यों का वध किया यह स्थान दैत्यों के खून से अपवित्र हो गया ! इसे पवित्र करने के लिए महर्षि अगस्त्य ने यहाँ पर महायज्ञ का आयोजन किया बाद में ऋषि के चले जाने के बाद यज्ञ की जिम्मेदारी शिवगण साणेश्वर को दी गयी (पुराणों में साणेश्वर को शिवगण भी कहा गया है)जो कि परम्परानुसार साणेश्वर के भक्तों द्वारा आज भी सम्पन्न होता है ! यह मंदिर ग्यारह गाँवो व पंच शिला पट्टी, काली पार के प्रमुख मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है ! महायज्ञ के अलावा इस मंदिर की पूजा अर्चना सिल्ला गाँव के सेमवाल, नौटियाल और  पुरोहित बारी - बारी से करते हैं ।
हर बारह साल में होने वाले यज्ञ से पहले साणेश्वर की डोली क्षेत्र भ्रमण के लिए निकलती है ! क्षेत्र भ्रमण के बाद वापस सिल्ला गाँव आकर यह  महायज्ञ होता है! इस महायज्ञ के आचार्य बैंजवाल (बेंजी गाँव), पन्त (कुणझेठी गाँव), पुरोहित व् सेमवाल (सिल्ला गाँव), डिमरी (बीरों), किमोठी (खाल - भेकुना ) व भट्ट होते हैं ! साणेश्वर के १२ वर्ष में होने वाले इस यज्ञ- महायज्ञ के लिए सम्पूर्ण पंच शिला क्षेत्र के लोग उनकी धर्म बहन देवी कूष्माण्डा  को बुलाने को कुमड़ी जाते हैं जो इस  विश्व का सबसे बड़ा महायज्ञ  में मुख्य देवी के रूप में यहाँ विराजमान होती है।
इस स्थान पर शिव गण साणेश्वर की पूजा अनेकों वर्षों से होती आ रही है ! घर में कोई भी शुभ कार्य से पूर्व श्रद्धालुओं द्वारा साणेश्वर महाराज की आराधना की जाती है है ! साणेश्वर को बूढ़ा शिव भी कहा जाता है। साणेश्वर शिव गण हैं या विश्रवा के पुत्र कुबेर ये तो स्वयं दैव ही जाने या भगवान साणेश्वर ही जाने। लेकिन भारत की उत्तर दिशा में स्थित होने के कारण मुझे यही लगता है कि ये यक्षराज कुबेर ही हो सकते हैं क्‍योंकि उत्तर दिशा के स्वामी कुबेर ही कहे गये हैं तथा उत्तर - पूर्व के स्वामी जिसे ईशान कोण या ईशान दिशा भी कहा जाता है के स्वामी भगवान शिव ही हैं। अतः साणेश्वर, ईशानेश्वर का अपभ्रंश भी हो सकता है।
जो भी हो आस्था, श्रद्धा व विश्वास का संगम इस विश्व का सबसे बड़ा महायज्ञ में देखते ही परिलक्षित होता है क्योंकि दूर - 2से भक्तगण यहाँ अपनी अटूट, श्रद्धा व भक्ति लेकर हजारों की संख्या में पहुंच रहे हैं। इसी कड़ी का एक हिस्सा बनने के लिए आज मेरे मन में प्रचण्ड इच्छा शक्ति जागृत हुई। और हम भी प्रभु के श्री चरणों में पहुंच गए। इस पावन धरती पर अवकाश प्राप्त शिक्षक श्रीयुत श्रीधर प्रसाद भट्ट जी से भी एक सुखद मुलाकात हुई।
उत्तराखंड समाचार स्रोत- महादेव सिंह नेगी जी की फेसबुक पोस्ट से

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